16विभूतियों का वर्णन

  1. अचिंत्य ऐश्वर्य संपन्न प्रभु! पृथ्वी,स्वर्ग, पाताल तथा दिशा -विदिशाओं में, आप के प्रभाव से युक्त, जो जो भी विभूतियां है,आप कृपा करके मुझसे उनका वर्णन कीजिए। प्रभु! मैं आपके चरण कमलों की वंदना करता हूं,जो समस्त तीर्थोंको भी तीर्थ बनानेवाले हैं।5
  2. उद्धव जी! मैं समस्त प्राणियों का आत्मा,हितेषी,सुह्रद और ईश्वर अर्थात नियामक हूं। मैं ही,इन समस्त प्राणियों और पदार्थों के रूप में और इनकी उत्पत्ति, स्थिति एवं प्रलय का कारण भी हूं। 9
  3. उद्धव जी! मैंने तुम्हारे प्रश्न के अनुसार, संक्षेप से, विभूतियों का वर्णन किया।यह सब परमार्थ वस्तु नहीं है, मनोविकार मात्र है; क्योंकि मन से सोची और वाणी से कही हुई कोई भी वस्तु परमार्थ (वास्तविक) नहीं होती, उसकी एक कल्पना ही होती है 41
  4. इसलिए, तुम वाणी को स्वच्छंद भाषण से रोको, मन के संकल्प विकल्प बंद करो; इसके लिए प्राणों को वश में करो और इंद्रियों का दमन करो। सात्विक बुद्धि के द्वारा प्रपंचाभीमुक्त होकर, शांत हो जा;फिर तुम्हें संसार के जन्म-मृत्यु रूप बीहड़ मार्ग में, भटकना नहीं पड़ेगा।     42ŚB 11.16.42 वाचं यच्छ मनो यच्छ प्राणान् यच्छेन्द्रियाणि च ।आत्मानमात्मना यच्छ न भूय: कल्पसेऽध्वने ॥ ४२ ॥Therefore, control your speaking, subdue the mind, conquer the life air, regulate the senses and through purified intelligence bring your rational faculties under control. In this way you will never again fall onto the path of material existence
  5. जो साधक बुद्धि के द्वारा,वाणी और मन को पूर्णतया वश में नहीं कर लेता, उसके व्रत, तप और दान उसी प्रकार क्षीण हो जाते हैं,जैसे कच्चे घड़े में भरा हुआ जल 43 
  6. इसलिए ,मेरे प्रेमी भक्तों को चाहिए कि, मेरे परायण होकर भक्ति युक्त बुद्धि से;  वाणी, मन और प्राणों का संयम करें। ऐसा कर लेने पर, फिर उसे कुछ करना शेष नहीं रहता; वह कृतकृत्य हो जाता हैं। Being surrendered to Me, one should control the speech, mind and life air, and then through loving devotional intelligence one will completely fulfill the mission of life.

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