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Showing posts from March, 2022

27 क्रिया योग

26 पूरुरवा

25 तीनों गुणों की वृत्तियों का निरूपण

 तीनों गुणों की वृत्तियों का निरूपण

24सांख्य योग

23 तितिक्षु ब्राह्मण

 एक तितिक्षु ब्राह्मण का इतिहास

22 तत्वों की संख्या

 पुरुष प्रकृति विवेक

21 गुण दोष व्यवस्था

 स्वरूप और रहस्य

20 ज्ञान कर्म भक्ति योग

19 भक्ति ज्ञान और यम नियम आदि

 भक्ति ज्ञान और यम नियम आदि साधनों का वर्णन

18 वानप्रस्थ सन्यासी के धर्म

16विभूतियों का वर्णन

अचिंत्य ऐश्वर्य संपन्न प्रभु! पृथ्वी,स्वर्ग, पाताल तथा दिशा -विदिशाओं में, आप के प्रभाव से युक्त, जो जो भी विभूतियां है,आप कृपा करके मुझसे उनका वर्णन कीजिए। प्रभु! मैं आपके चरण कमलों की वंदना करता हूं,जो समस्त तीर्थोंको भी तीर्थ बनानेवाले हैं।5 उद्धव जी! मैं समस्त प्राणियों का आत्मा,हितेषी,सुह्रद और ईश्वर अर्थात नियामक हूं। मैं ही,इन समस्त प्राणियों और पदार्थों के रूप में और इनकी उत्पत्ति, स्थिति एवं प्रलय का कारण भी हूं। 9 उद्धव जी! मैंने तुम्हारे प्रश्न के अनुसार, संक्षेप से, विभूतियों का वर्णन किया।यह सब परमार्थ वस्तु नहीं है, मनोविकार मात्र है; क्योंकि मन से सोची और वाणी से कही हुई कोई भी वस्तु परमार्थ (वास्तविक) नहीं होती, उसकी एक कल्पना ही होती है 41 इसलिए, तुम वाणी को स्वच्छंद भाषण से रोको, मन के संकल्प विकल्प बंद करो; इसके लिए प्राणों को वश में करो और इंद्रियों का दमन करो। सात्विक बुद्धि के द्वारा प्रपंचाभीमुक्त होकर, शांत हो जा;फिर तुम्हें संसार के जन्म-मृत्यु रूप बीहड़ मार्ग में, भटकना नहीं पड़ेगा।     42ŚB 11.16.42 वाचं यच्छ मनो यच्छ प्राणान् यच्छेन्द्रियाणि च ।आत्मानमात्मना

17 वर्णाश्रम धर्म निरूपण

भिक्षु गीत

 इस संसार में मनुष्य को कोई दूसरा सुख या दुख नहीं देता, यह तो उसके चित् का भ्रम मात्र है। यह सारा संसार और इसके भीतर मित्र, उदासीन और शत्रु के भेद अज्ञान कल्पित है।11/23/60 No other force besides his own mental confusion makes the soul experience happiness and distress. His perception of friends, neutral parties and enemies and the whole material life he builds around this perception are simply created out of ignorance. पवमान मन्त्र या पवमान अभयारोह बृहदारण्यक उपनिषद में विद्यमान एक मन्त्र है। यह मन्त्र मूलतः सोम यज्ञ की स्तुति में यजमान द्वारा गाया जाता था। ॐ असतो मा सद्गमय। तमसो मा ज्योतिर्गमय। मृत्योर्मामृतं गमय ॥ ॐ शान्ति शान्ति शान्तिः ॥ – बृहदारण्यकोपनिषद् 1.3.28। अर्थ मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो। मुझे अन्धकार से प्रकाश की ओर ले चलो। मुझे मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो।11/25/