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विभूति योग16 गुण गुण दोष वर्णाश्रम वी वर्णाश्रम भक्ति भक्ति योग क्रिया योग पुरुरवा तत्व तितिक्षा सांख्य योग27
यदि मनुष्य योगी-यति होकर भी अपने हृदय की विषय वासनाओं को उखाड़ नहीं फेंकते तो उन असाधको के लिए आप ह्रदय में रहने पर भी वैसे ही दुर्लभ है, जैसे कोई अपने गले में मणि पहने हुए हो, परंतु उसकी याद न रहनेपर उसे ढूंढता फिरे इधर-उधर।